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Thursday, August 2, 2007
शाम से आंख में
शाम से आंख में
नमी सी है
आज फिर आपकी कमी सी है
दफन कर दो हमें कि सांस मिले
नब्ज़ कुछ देर से थमी सी है॥
वक़्त रहता नहीं कहीँ टिक कर
इसकी आदत भी आदमी सी है॥
कोई रिश्ता नहीं रहा फिर भी
एक तस्लीम लाज़मी सी hai
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